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बुवाई के बाद बाजरा की खेती की करें ऐसे देखभाल

बुवाई के बाद बाजरा की खेती की करें ऐसे देखभाल

बाजरा की  खेती की बुवाई जुलाई से अगस्त के बीच की जाती है। लेकिन किसान भाइयों को बुवाई के बाद भी फसल पर नजर रखनी होती है। यदि खेती की निगरानी अच्छी की गयी और खेती की जरूरत के हिसाब से देखभाल की गयी तो पैदावार अच्छी होती है। इससे किसान की आमदनी भी अच्छी हो जाती है। 

बुवाई के बाद सबसे पहले करें ये काम

बाजरे की पैदावार अच्छी बुवाई पर निर्भर करती है। यदि बीज अधिक बोया गया है और पौधों के बीच दूरी मानक के हिसाब से नही है तो पैदावार प्रभावित हो सकती है। यदि बीज कम हो बोया  गया हो तो उससे भी पैदावार प्रभावित होती है। इसलिये खेतों में बुवाई के समय ही एक क्यारी में अलग से बीज बो देने चाहिये ताकि जरूरत पड़ने पर क्यारी मे उगे पौधो की खेतों में रोपाई की जा सके। इसके लिए  बुवाई के बाद जब अंकुर निकल आयें तब किसानों को खेतों का निरीक्षण करना होगा। उस समय यह देखना चाहिये कि बुवाई के समय यदि बीज अधिक पड़ गया हो तो पेड़ों की छंटाई कर लेनी चाहिये। यदि पौधे कम हों या बीज कम अंकुरित हो सके हों तो पहले से तैयार क्यारी से पौधों को रोपना चाहिये।

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सिंचाई के प्रबंधन का रखें विशेष ध्यान

हालांकि बाजरा की बुवाई बरसात के मौसम होती है। बाजरा के बीजों को अंकुरित होने के लिए खेतों में नमी की आवश्यकता होती है। इसलिये  किसान भाइयों को बुवाई के बाद खेतों की बराबर निगरानी करनी होगी। यदि बुवाई के बाद वर्षा नही होती है तो  देखना होगा कि  खेत कहीं सूख तो नहीं रहा है। आवश्यकतानुसार सिंचाई करना चाहिये । आवश्यकता पड़ने पर दो से तीन बार सिंचाई करना चाहिये।  जब बाजरा में बाली या फूल आने वाला हो तब खेत की विशेष देखभाल करनी चाहिये। उस समय यदि वर्षा न हो रही हो और खेत सूख गया हो तो सिंचाई करनी चाहिये। इससे फसल काफी अच्छी हो जायेगी। 

जलजमाव हो तो करें पानी के निकालने का प्रबंध

बाजरा की खेती में किसान भाइयों को वर्षा के समय खेत की निगरानी करते समय यह भी ध्यान देना होगा कि कहीं खेत मे जलजमाव तो नहीं हो गया है। यदि हो गया हो तो पानी के निष्कासन की तत्काल व्यवस्था करनी चाहिये।  जलजमाव से भी फसल को नुकसान हो सकता है। बुवाई के बाद बाजरा की खेती की करें ऐसे देखभाल


खरपतवार को समाप्त करने के लिए करें समय-समय पर निराई गुड़ाई

बाजरे को खरपतवार से सबसे अधिक नुकसान पहुंचता है। चूंकि  इसकी खेती बरसात के मौसम में होती है तो किसान भाइयों को वर्षा के कारण खेत की देखभाल का समय नहीं मिल पाता है। इसके बावजूद किसान भाइयों को चाहिये कि वे बाजरा की खेती की अच्छी पैदावार के लिए खरपतवार का नियंत्रण करे। बुवाई के 15 दिन बाद निराई गुड़ाई करनी चाहिये। उसके बाद एक माह बार निराई गुड़ाई करायें। फसल की बुवाई के दो माह बाद  निराई गुड़ाई करायें। इसके अलावा खरपतवार होने पर एट्राजीन  को पानी में घोल कर छिड़काव करायें।  किसान भाई ध्यान रखें कि एट्राजीन का छिड़काव निराई गुड़ाई करने से तीन-चार दिन पूर्व करना चाहिये। इससे काफी लाभ होता है। 

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बुवाई के बाद उर्वरक भी समय-समय पर दें

बाजरा की अच्छी पैदावार के लिए किसान भाइयों के बाद बुवाई के बाद खेतों को समय-समय पर उर्वरकों की उचित मात्रा देनी चाहिये। एकल कटाई के लिए बुवाई के एक माह बाद 40 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर देनी चाहिये। कई बार कटाई के लिए प्रत्येक कटाई के बाद 30 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर देनी चाहिये। जस्ते की कमी वाले क्षेत्रों में 10-20 किलो जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर देनी चाहिये। कई जगहों पर नाइट्रोजन की जगह यूरिया का प्रयोग किया जाता है। जहां पर यूरिया का प्रयोग किया जाता है वहां पर बुवाई से डेढ़ महीने के बाद 20 से 25 किलो यूनिया प्रति एकड़ के हिसाब से देना चाहिये। बाजरा में कीट एवं रोग प्रबंधन

कीट एवं रोग प्रबंध

बाजरे की खेती में अनेक कीट एवं रोग लगते हैं। किसान भाइयों को चाहिये कि खेतों में खड़ी फसल को कीटों एवं रोगों से बचाने के उपाय करने चाहिये। इसके लिए खेतों में खड़ी फसल की निरंतर निगरानी करते रहना चाहिये। जब भी जैसे ही किसी कीट या रोग का पता चले उसका उपाय करना चाहिये।  

आईये जानते हैं कि कौन-कौन से कीट व रोग बाजरा की खेती में लगते हैं और उन्हें कैसे रोका जा सकता है। 

दीमक : यह कीट बाजरा की खड़ी फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। यह कीट जड़ से लेकर पत्ते तक में लगता है। जब भी इस कीट का पता चले किसान भाइयों को तत्काल सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी ढाई लीटर हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करना चाहिये।  इसके अलावा नीम की खली का प्रयोग करना चाहिये, इसकी गंध से दीमक भाग जाती है।

तना छेदक कीट: यह कीट भी खड़ी फसल में लगता है। यह कीट पौधे के तने में लगता है और पूरे पौधे को चूस जाता है। इससे पौधे की बढ़वार रुक जाती है।  इससे बाजरे की फसल को बहुत नुकसान पहुंचता है। इस कीट का नियंत्रण करने के लिए कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 किलो अथवा फोरेट 10 प्रतिशत सीजी को 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिये। 

हरित बालियां रोग: इस रोग के लगने के बाद बाजरा की बालियां टेढ़ी-मेढ़ी और बिखर जाती हैं।  इस रोग के दिखते ही खरपतवार निकाल कर जीरम 80 प्रतिशत डब्ल्यूपी 2.0 किलो को 500-600 पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिये। 

सफेद लट: यह लट पौधों की जड़ों को काट कर फसल को विभिन्न अवस्थाओं में नुकसान पहुचाती है।  सफेद लट के कीट प्रकाश के प्रति आकषिँत होते हैं। इसलिये प्रकाश पाश पर आकर्षित कर सभी को एकत्रित करके मिट्टी के तेल मिले पानी में डालकर नष्ट कर दें। 

हरी बाली रोग: यह रोग अंकुरण के समय से पौधों की बढ़वार के समय लगता है। इस रोग से पौधों की पत्तियां पीली पड़ जातीं हैं और बढ़वार रुक जाती है।  ऐसे रोगी पौधों को खेत से बाहर निकाल कर नष्ट करें और कीटनाशकों का इस्तेमाल करें। 

अरगट रोग: यह रोग बाजरा में बाली के निकलने के समय लगता है।  इससे फसल को काफी नुकसान होता है। इस रोग के लगने के बाद पौधां से गुलाबी रंग का चिपचिपा गाढ़ा रस निकलने लगता है। यह पदार्थ बाद में भूरे रंग का हो जाता है। यह बालियों में दानों की जगह भूरे रंग का पिंड बन जाता है। ये जहरीला भी होता है। इसकी रोकथाम के  लिए सबसे पहले खरपतवार हटायें। उसके बाद 250 लीटर पानी में 0.2 प्रतिशत मैंकोजेब मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। लाभ मिलेगा। 

टिड्डियों का प्रकोप: बाजरा की खेती में पौध बड़ा होने के कारण इसमें टिड्डियों के हमले का खतरा बना रहता है।  हमला करने के बाद टिड्डी दल पौधे की सभी पत्तियों को खा जाता है और इससे पैदावार को भी नुकसान होता है।  जब भी टिड्डी दल का हमला हो तो किसान भाइयों को चाहिये कि इसकी रोकथाम के लिए खेत में फॉरेट का छिड़काव करें। 

बाजरे की कटाई

बाजरे की कटाई उस समय करनी चाहिये जब दाना पूरी तरह पक कर तैयार हो जाये। यह माना जाता है कि बुवाई के 80 दिन से लेकर 95 दिन के बीच दाना पूरी तरह से पक जाता है। उसके बाद बाजरा के पौधे की कटाई करनी चाहिये। उसके बाद इसके सिट्टों यानी बालियों को अलग करके उनमें से दाना निकालना चाहिये।

बाजरे की खेती करके किसान कमा सकते है अच्छा मुनाफा जाने सम्पूर्ण जानकारी

बाजरे की खेती करके किसान कमा सकते है अच्छा मुनाफा जाने सम्पूर्ण जानकारी

बाजरे की खेती खरीफ के मौसम में की जाती है। भारत की में बाजरे के खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।  बाजरे की फसल मुख्य रूप से मोटेअनाज के रूप में उगाई जाती है। 

बाजरे की फसल का प्रयोग पशुओं के चारे के रूप में भी किया जाता है। आज के इस लेख में हम आपको बाजरे की खेती के बारे में समुपरां जानकारी देंगे। 

बाजरे की खेती के लिए भूमि की तैयारी कैसे करे किसान 

बाजरे की फसल लगभग हर तरह की मिट्टी में होती है। बाजरे की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है। यह जलभराव वाली मिट्टी में अच्छी तरह से उपज नहीं देता। 

खेत को हैरो या कल्टीवेटर से एक या दो बार जुताई करके समतल करके बाद में बुवाई करें। इसकी खेती के लिए अधिक पानी की आवश्यकता भी नहीं होती है। 

बाजरे के अधिक उपज देने वाली किस्में 

किसी भी फसल की खेती के अच्छी उपज पाने के लिए किस्मों का अहम योगदान होता है। बाजरे की अच्छी उपज पाने के लिए अच्छी उन्नत किस्मों का चयन करें। 

बाजरे की उच्च उपज देने वाली किस्में निम्नलिखित है - KBH 108, GHB 905, 86M89, MPMH 17, Kaveri Super Boss, Bio 448, MP 7872, MP 7792, 86M86, 86M66, RHB-173, HHB 67, Nandi 70, Nandi 72, 86M64 , HHB 234, Bio 70, HHB-226, RHB-177

बाजरा बोने की विधि /Method of sowing 

बाजरे की बुवाई की तीन प्रणालियाँ अपनाई जाती हैं:

  1.  समतल सतह पर
  2.  ढोल या खुड ​​का उपयोग करके और
  3.  चौड़ी क्यारी और खांच प्रणाली पर

बीज को 2.5 सेमी-3 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए।

बाजरे के बुवाई कब करनी चाहिए 

मानसून के आगमन के साथ, जुलाई के पहले पखवाड़े में देश के उत्तर और मध्य क्षेत्रों मेंखरीफ बाजरा की बुआई करनी चाहिए। 

अक्टूबर का पहला पखवाड़ा तमिलनाडु में रबी करने के लिए अच्छा है। मौसम: मराठवाड़ा, महाराष्ट्र में मानसून की पहली बारिश से पहले सूखी बुवाई करें।

बीज उपचार और बीज की मात्रा 

जैव कीटनाशकों से बीज उपचार (ट्राइकोडर्मा हर्जियानम @ 4 ग्राम किग्रा) या थीरम 75% धूल प्रति 3 ग्राम किलो बीज के हिसाब से करें इससे मिट्टी में पैदा होने वाली बीमारियों के खिलाफ मदद मिलेगी। 

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बीज का उपचार सल्फर पाउडर @ 4 से करें ग्राम किलो-1 बीज कंडुआ रोग को नियंत्रित करता है। अरगट से प्रभावित बीजों को निकालने के लिए उन्हें 10% पानी में भिगोया जाता है। बाजरे की बुवाई के लिए 1 – 1. 5 किलोग्राम बीज काफी है।

बाजरे की फसल में पोषण व्यवस्था

शुष्क क्षेत्रों में 40 किलोग्राम नाइट्रोजन 20 किलोग्राम फॉस्फोरस/हेक्टेयर और 60 किलोग्राम फॉस्फोरस 30 किलोग्राम/हेक्टेयर का उपयोग करें। 

इंटरक्रॉपिंग सिस्टम के लिए अर्ध-शुष्क क्षेत्रों का उपयोग एकमात्र बाजरा के साथ किया जाना चाहिए। भारी बारिश से रेतीली दोमट (मिट्टी) नाइट्रोजन खो सकती है। 

बीजों की तैयारी के दौरान, संस्तुत नाइट्रोजन की लगभग आधी मात्रा प्रयोग की जानी चाहिए।जब फसल 25 दिन की हो जाती है, हाथ से खेत में नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा छिड़के।

सिंचाई

लंबे समय तक सूखे के दौर में, फसल के महत्वपूर्ण चरणों में सिंचाई की जानी चाहिए |यदि जल उपलब्ध हो तो वृद्धि अर्थात कल्ले निकलना, पुष्पन और दानों के विकास की अवस्था। 

गर्मी के मौसम में,बाजरा की जरूरत के अनुसार नियमित अंतराल (0.75-1.0IW/CPE 40 मिमी के साथ) पर सिंचाई की जानी चाहिए।

बाजरा की कटाई

बाजरा की कटाई का सबसे अच्छा चरण तब होता है जब पौधे शारीरिक अवस्था में पहुँच जाते हैं। हिलर क्षेत्र में अनाज के तल पर काले धब्बे द्वारा परिपक्वता निर्धारित की जाती है। 

जब फसल परिपक्व हो जाती है, पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं और लगभग सूख जाती हैं। बाजरे के दाने कठिन और दृढ़ हो जाते है। 

बाजरे की कटाई की सामान्य प्रथा में पहले बालियां काटी जाती हैं और बाद में डंठल। डंठल (पुआल) को एक सप्ताह के बाद काटा जाता है, सूखने दिया जाता है और फिर ढेर लगा दिया जाता है। 

14% से कम नमी को सूखा माना जाता है। लंबी अवधि के भंडारण (6 महीने से अधिक) के लिए, अनाज नमी की मात्रा 12% से कम होनी चाहिए।